पावर पावर ट्रांसफार्मर की सुरक्षा और कार्यक्षमता के लिए नीचे बताये गए भाग पावर ट्रांसफार्मर को जोडें जाते हैं।
- पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Transformer Tank)
- बुशिंग (Bushing)
- टॅप चेंजर (Tap changer)
- काँझरव्हेटर (Conservator)
- ब्रीदर (Breeder)
- एक्सप्लोजन व्हेंट (Explosion Vent)
- बुकॉल्झ रिले (Buchholz Relay)
- टेंप्रेचर गेज (Temperature Gauge)
- ट्रांसफार्मर रेडिएटर (Radiators)
- ट्रान्सफॉर्मर ऑईल (Transformer Oil)
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इन सब भागों की संक्षिप्त मे जानकारी नीचे पढ़ें।
1) पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Transformer Tank)
पावर ट्रांसफार्मर का टैंक (Tank) लोहे की शीट का बना होता है। उस पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) में ऑइल भरकर उस ऑइल में पावर ट्रांसफार्मर कोर व वाइंडिंग डूबोकर रखी जाती है।
बड़े आकार के पावर ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने हेतु, पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) लोहे की सपाट शीट से न बनाकर वलयाकार शीट से बनाया जाता है। वलयाकार शीट का इस्तेमाल करने से कम जगह पावरके बावजूद ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) का पृष्ठफल बढ़ जाता है।
पावर ट्रांसफार्मर में निर्माण हुई ऊष्मा का उत्सर्जन जल्दी होता है। और इस तरह पावर ट्रांसफार्मर ठंडा रखने में मदत मिलती है।
2) बुशिंग (Bushing)
पावर ट्रांसफार्मर से बाहर H.T. और L.T. वाइंडिंग के सिरे निकले जाते हैं। इन सिरों को सप्लाय देने के लिए और इनसे सप्लाय लेने के लिए पावर ट्रांसफार्मर पर बुशिंग लगी होती है।
इस बुअहिंग मे एक कंडक्टर होता है, जिसके चारों ओर इंसुलेशन चढ़ाया होता है। इंसुलेशन के लिए चीनी मिट्टी (पोर्सलीन) या कंचबक इस्तेमाल होता है। इस तरह के इंसुलेशन की परत दर परत उस कंडक्ट पर चढाकर कंडक्टर का आखरी सिर खुला छोड़ दिया जाता है। का सिरे पर नट लगाकर कंडक्टर, लग जोड़ने के लिए व्यवस्था जाती है।
3) टॅप चेंजर (Tap Changer)
पावर ट्रांसफार्मर की प्रायमरी वाइंडिंग से अलग अलग वोल्टेज के लिए अलग अलग टैपिंग्स निकली होती है। इन टेपिंग्स का कनेक्शन एक रोटरी स्विच के माध्यम से किया जाता है। ऐसे स्विच को टॅप चेंजर कहा जाता है।
यह स्विच हाथों से या फिर मोटर की सहायता से चलाया (Operate) जाता है। अगर किसी समय पावर ट्रांसफार्मर के लोड का प्रमाण बढ़ जाता है, तब उस पावर ट्रांसफार्मर का आउटपुट वोल्टेज कम हो जाता है।
ऐसे समय टॅप चेंजर की सहायता से सेकेंडरी के टॅप बदलकर वोल्टेज स्थिर रखने के लिए टॅप चेंजर का उपयोग किया जाता है।
4) काँझरव्हेटर (Conservator)
पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) की ऊपर की तरफ एक पाईप के जरीए एक लंबी गोलाकार टंकी जुड़ी होती है, जिसे काँझरव्हेटर अथवा एक्सपेशन टैंक (Tank) कहा जाता है। काँझरव्हेटर टैंक (Tank) में आधे से थोड़ा ज्यादा लेव्हल तक पावर ट्रांसफार्मर आयल भरा होता है।
आयल की लेव्हल देखने के लिए काँझरव्हेटर टैंक (Tank) पर एक आयल लेव्हल इंडिकेटर होता है।इसकी स्केल से आयल का प्रमाण पता चलता है।
ट्रांसफ़ॉर्मर के कार्य करने से गर्म हुआ पावर ट्रांसफार्मर आयल हल्का होकर टैंक (Tank) में ऊपर कि तरफ आता है। इसी गर्मी की वजह से आयल में गैसेस निर्माण होने लगती है।
इस निर्माण हुई गैस के लिए पावर ट्रांसफार्मर में थोड़ी जगह होनी जरूरी होती है। इसलिए काँझरव्हेटर टैंक (Tank) को उसके आधे लेव्हल से थोड़ा ज्यादा भरा जाता है। पूरा नही भरा जाता।
अगर पूरा भर दिया जाए तो आयल की ऊष्मा से निर्माण हुई गैसेस की वजह से पावर ट्रांसफार्मर में आंतरिक दाब बढ़कर टैंक (Tank) में विस्फोट होने की संभावना होती है। इसलिए काँझरव्हेटर टैंक (Tank) को पूरा नही भरा जाता।
5) ब्रीदर (Breeder)
काँझरव्हेटर के ऊपर की तरफ से एक पाईप के जारीए ब्रीदर जुड होता है। ब्रीदर यह बेलनाकार होता है। जिसका नीचे का सिरा ओपन होता है। ब्रीदर में अलग अलग चेम्बर में सिलीका जैल व कॅलशियम क्लोराईड भरा होता है। पूरी तरह से सूखे हुए सिलीका जेल का नीले रंग का होता है।
जब सिलीका जेल में पानी का अंश मिलता है, तब इसका रंग सफेद हो जाता है। ट्रांसफार्मर कार्य करते समय ट्रांसफ़ॉर्मर टैंक का आयल गर्म होकर प्रसारित होता है। और ठंडा होने के बाद संकुचित होता है। इसलिए जब ट्रांसफार्मर आयल गर्म होकर प्रसारित होने लगता है, तब इसके साथ टैंक में गैसेस भी निर्माण होने लगती है।
यह गैसेस का टैंक से बाहर निकलना बहुतही जरूरी होता है। और जब ट्रांसफार्मर आयल ठंडा होता है, तब आयल संकुचित होता है। तब काँझरव्हेटर में हवे का खोकलपन निर्माण हो जाता है।
यह खोखलापन शुद्ध बाष्पविरहित और आक्सिजन विरहित हवा से भरना जरूरी होता है। आसान भाषा मे समझे तो, ट्रांसफार्मर के कार्य करते समय उसे सांस लेने की जरूरत पड़ती है। और यह काम करता है ब्रीदर।
जब ट्रांसफार्मर टैंक में गैसेस निर्माण होने लगती हैं, तब वह गैसेस काँझरव्हेटर से होते हुए ब्रीदर के माध्यम से ट्रांसफार्मर के बाहर निकलती हैं। और जब आयल ठंडा होने लगता है। तब आयल संकुचित होने की वजह से काँझरव्हेटर का आयल लेव्हल कम होने लगता है।
जिसके कारण काँझरव्हेटर में निर्माण हुए खोखलेपन की जगह ट्रांसफार्मर के बाहर की हवा ले लेती है । जो ब्रीदर से होते हुए वहां पहुंचती है। ब्रीदर में मौजूद सिलीका जैल व कॅलशियम क्लोराईड बाहर से आने वाली हवा में से पानी की बाष्प सोख लेते हैं। जिसके कारण बाष्पविरहित और शुद्ध हवा फिर से काँझरव्हेटर में निर्माण हुए खोखलेपन को भर देती है।
मतलब ब्रीदर का मुख्य काम काँझरव्हेटर तक बाष्पविरहित और ऑक्सीजन विरहित हवा को पहुंचना होता है।
आयल में बाष्प मिल जाये तो आयल की डायइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ कम हो जाती है। और अगर आयल में ऑक्सीजन मिल जाये, और अगर किसी कारण से स्पार्क होता है तो ट्रांसफार्मर में ऑक्सिडेशन की अभिक्रिया होकर आयल के गोले गोले बन जाते हैं।
ऎसा आयल ट्रांसफार्मर के लिए इस्तेमाल करना ठीक नही होता। इसलिए ब्रीदर में एक और रासायनिक पदार्थ को रखकर हवे में से ऑक्सीजन को अलग करने की व्यवस्था होती है।
6)एक्सप्लोजन व्हेंट (Explosion Vent)
पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) के उपर कि तरफ काँझरव्हेटर के बगल में एक टेढ़ा पाईप जुड़ा होता है। उस टेढ़े पाईप को एक्सप्लोजव्हेंट अथवा इमरजेंसी प्रेशर रिलीफ कहा जाता है। इसके अगले सिरे पर एक पतला पर्दा लगा होता है। अगर किसी वजह से कभी ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) के भीतर शार्ट सर्किट , ओवर लोड अथवा अन्य किसी कारण से दोष निर्माण हो जाए।
तब उस समय निर्माण होने वाली ज्यादा ऊष्मा के कारण ज्यादा गैसेस निर्माण होती है। ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) के भीतर इस समय ज्यादा दबाव निर्माण हो जाता है। इस दबाव के कारण एक्सप्लोजव्हेंट का पर्दा फट बजट है। और एक्सप्लोजव्हेंट के माध्यम से निर्माण हुई गैसेस पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) से बाहर निकल जाती है। इस वजह से पावर ट्रांसफार्मर में स्फोट होने से बचाव होता है।
7) बुकॉल्झ रिले (Buchholz Relay)
ट्रांस्फोर्मर की सुरक्षा हेतु यह एक और उपकरण ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल किया जाता है। यह रिले ट्रांसफार्मर टैंक और काँझरव्हेटर के बीच एक पाईप के माध्यम से जुड़ा होता है। इस रिले में आयल में तैरने वाले दो बॉल्स होती हैं। इन बॉल्स के नीचे 2 मरक्यूरी स्विच होते हैं।
साधारण स्थिति में दोनों स्विटचेस के कॉन्टेक्ट्स ओपन (N.O) होते हैं। ऊपर के कॉन्टेक्ट्स से बेल का सर्किट जुड़ा होता है। बेल को बैटरी का निगेटिव्ह पॉइंट जुड़ा होता है। और पोसिटिव्ह पॉइंट स्विचबके माध्यम से जुड़ा होता है। नीचे के कॉन्टेक्ट्स को ट्रिप सर्किट जुड़ा होता है।
ट्रांसफार्मर के कार्य करते समय अगर में कोई दोष निर्माण हो जाए तो, ट्रांसफार्मर में गैसेस निर्माण होकर ट्रांसफार्मर टैंक के भीतर का दाब बढ़ जाता है। दाब की वजह से ऊपर का बॉल नीचे की तरफ आ जाता है। NO कॉन्टेक्ट्स NC में बदलकर बेल का सर्किट पूरा हो जाता है।
ट्रांसफार्मर में आई गड़बड़ी की सूचना बेल के माध्यम से इस तरह मिल जाती है। अगर दोष (फॉल्ट) किसी गंभीर स्वरूप का (शॉर्ट सर्किट, ओव्हरलोड, अर्थ फॉल्ट) हो तो ट्रांसफार्मर टैंक के भीतर ज्यादा दाब निर्माण होता है। इससे नीचे का बॉल दाब से आगे की ओर धकेल दिया जाता है। इससे ट्रिप सर्किट पूरा होकर ट्रांसफार्मर सप्लाई से अलग हो जाता है।
इस तरह से यह रिले अपना कार्य करके ट्रांसफार्मर का रक्षण करता है।
8) टेंप्रेचर गेज (Temperature Gauge)
ट्रांसफार्मर का तापमान देखने के लिए ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) के ऊपर ली तरफ एक मीटर लगा होता है, जिसे टेंप्रेचर गेज कहा जाता है। इस टेंप्रेचर गेज की सहायता से जब पावर ट्रांसफार्मर का तापमान मर्यादा से ज्यादा होता है। तब टेंप्रेचर गेज की सहायता से अलार्म बजकर तापमान बढ़ने की सूचना मिलती है।
9) ट्रांसफार्मर रेडिएटर (Radiators)
ट्रांसफार्मर रेडिएटर (Radiators) यह ट्रांसफार्मर का मुख्य भाग होता है। जो ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने मे मदत करता है। ट्रांसफार्मर रेडिएटर ट्रांसफार्मर टँक से 2 जगहों से जुड़ा होता है जैसा की चित्र मे दिखाया गया है। रेडिएटर ट्रांसफार्मर टँक के ऊपरी और निचले सिरे से 2 जगहों से पईप जरिए जुड़ा होता है । जरूरत ही मुताबिक हर ट्रांसफार्मर मे रेडिएटर की संख्या होती है।
जब ट्रांसफार्मर सर्विस मे होता है तब ट्रांसफार्मर टैंक का गर्म ऑइल हल्का होकर ऊपर की तरफ जाता है। इस गर्म ऑइल का जल्दी ठंडा होना जरूरी होता है। गर्म हुए ऑइल को ठंडा करने का काम ट्रांसफार्मर के रेडिएटर (Radiators) का होता है।
गर्म ऑइल रेडिएटर के ऊपर के पईप से होते हुए रेडिएटर मे पहुंचता है जहां से वह रेडिएटर के अलग अलग ब्लेडस मे विभाजित हो जाता है। रेडिएटर की ब्लेडस का ज्यादातर हिस्सा बाहरी हवा के संपर्क मे होता है। इस वजह से रेडिएटर के ब्लेड मे पहुँचा गर्म ऑइल ब्लेड मे ही जल्दी ठंडा हो जाता है।
यह ठंडा हुआ ऑइल भारी होकर नीचे की ओर जाता है। रेडिएटर के नीचे के पाईप के जरिए फिर से यह ठंडा ऑइल ट्रांसफार्मर टँक के निचले हिस्से मे दाखिल हो जाता है। यह क्रिया निरंतर चलती रहती है। इस तरह रेडिएटर (Radiators) की मदत से ट्रांसफार्मर को ठंडा रखा जाता है।
10) ट्रान्सफॉर्मर ऑईल (Transformer Oil)
यह एक खनिज तेल होता है। लेकिन बाजार में यह पावर ट्रांसफार्मर आयल के नाम से प्रचलित है। यह आयल एक अच्छे प्रकार का द्रव इंसुलेटर है। बाष्पविरहित आयल की डायइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ 30 से 40 KV/mm होती है।
ऐसा आयल पावर ट्रांसफार्मर टैंक (Tank) में भरकर उसमे वाइंडिंग और कोर को डुबोकर रखा जाता है। पावर ट्रांसफार्मर को ठंडा रखना और वाइंडिंग और कोर में इंसुलेशन बनाए रखना यह मुख्य कार्य पावर ट्रांसफार्मर आयल का होता है।
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