विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में, ट्रांसफार्मर एक महत्वपूर्ण डिवाइस है जो विद्युत शक्ति को एक आकर्षणकर्षण सिद्धान्त पर कार्य करके परिवर्तित करने का कार्य करता है। यह उपकरण बिजली वितरण और उपयोग में विद्युत शक्ति को सुरक्षित और उपयोगी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ट्रांसफार्मर का आविष्कार परिणामित्रों के योगदान के साथ हुआ, जब Michael Faraday ने 1831 में और Joseph Henry ने 1832 में इसके महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को खोजा और विकसित किया।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम पहले ट्रांसफार्मर की परिभाषा जानेंगे, फिर इसके कार्य करने के प्रमुख सिद्धान्तों पर बात करेंगे, और यह समझेंगे कि ट्रांसफार्मर हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है।
आइए शुरुआत करते हैं, ट्रांसफार्मर के आदर्शिक विश्लेषण से।
ट्रांसफार्मर (Transformer) की परिभाषा | ट्रांसफार्मर क्या है?
विज्ञान और तकनीक में, ट्रांसफार्मर (Transformer) एक ऐसा यंत्र है जो विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना फ्रीक्वेंसी (Frequency) और पावर में बदलाव किए बिना स्थिर वोल्टेज (Voltage) परिवर्तित करने का काम करता है। इसका मुख्य उद्देश्य विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना है, बिना विद्युत शक्ति के गुणमान में कोई परिवर्तन किए।
ट्रांसफार्मर किसे कहते हैं?
ट्रांसफार्मर को उस यंत्र के रूप में पहचाना जाता है जो विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थिर रूप से पहुँचाता है, बिना किसी फ्रीक्वेंसी (Frequency) या पावर में परिवर्तन किए। यह यंत्र बिजली वितरण और उपयोग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ट्रांसफार्मर क्या है? यह कितने प्रकार के होते हैं?
ट्रांसफार्मर कई प्रकार के हो सकते हैं, लेकिन उनमें प्रमुख दो प्रकार होते हैं – सिंगल फेज ट्रांसफार्मर और थ्री फेज ट्रांसफार्मर। सिंगल फेज ट्रांसफार्मर एक ही फेज की विद्युत शक्ति को स्थानांतरित करता है, जबकि थ्री फेज ट्रांसफार्मर तीन फेज की विद्युत शक्ति को स्थानांतरित करता है। इनमें से प्रत्येक का अपना उपयोग होता है, जो आवश्यकताओं के आधार पर चयनित किया जाता है।
Transformer कितने प्रकार के होते हैं? | ट्रांसफार्मर के प्रकार | Types of Transformers in hindi
ट्रांसफार्मर के काम, रचना , वोल्टेज रेंज के अनुसार अलग- अलग प्रकार होते हैं।
Serial Number | Type of Transformer | Uses |
---|---|---|
1 | सिंगल फेज ट्रांसफार्मर (Single Phase Transformer) | घरों और छोटे व्यवसायों में प्रयुक्त होता है। |
2 | थ्री फेज ट्रांसफार्मर (Three Phase Transformer) | उद्योगों और विद्युत उपकरणों के लिए प्रयुक्त होता है। |
3 | स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step Up Transformer) | इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर आउटपुट वोल्टेज पैदा करता है। |
4 | स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Step Down Transformer) | इनपुट वोल्टेज को कम करके आउटपुट वोल्टेज पैदा किया जाता है। |
5 | ऑटो ट्रांसफार्मर (Auto Transformer) | वोल्टेज को बढ़ाने और कम करने के लिए प्रयुक्त होता है। |
6 | कोर टाइप ट्रांसफार्मर (Core Type Transformer) | बड़े वोल्टेज रेंज के लिए प्रयुक्त होता है। |
7 | शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Shell Type Transformer) | बड़े वोल्टेज और पावर प्रणालियों के लिए प्रयुक्त होता है। |
8 | बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Berry Type Transformer) | कम वोल्टेज रेंज के लिए प्रयुक्त होता है। |
9 | इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर (Instrument Transformer) | विद्युत मापन उपकरणों के लिए उपयोगी होता है। |
10 | करंट ट्रांसफार्मर (Current Transformer – CT) | करंट की मापन के लिए किया जाता है, विद्युत सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। |
11 | पोटेंशिअल ट्रांसफार्मर (Potential Transformer- PT) | वोल्टेज की मापन के लिए उपयोग होता है, विद्युत मापन उपकरणों में उपयोगी होता है। |
वोल्टेज के आधार पर ट्रांसफार्मर के दो प्रकार होते हैं।
- स्टेप अप ट्रांसफार्मर
- स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर
FAQ
स्टेप अप ट्रांसफार्मर क्या होता है? (Step Up Transformer)
जिस ट्रांसफार्मर की प्रायमरी वाइंडिंग को दिए गए इनपुट वोल्टेज को जो ट्रांसफार्मर उसकी सेकंडरी वाइंडिंग से वोल्टेज ज्यादा करके आउटपुट वोल्टेज लोड के लिए प्रदान करता है, ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step Up Transformer) कहते हैं।
स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर क्या होता है? (Step Down Transformer)
जिस ट्रांसफार्मर की प्रायमरी वाइंडिंग को दिए गए इनपुट वोल्टेज को जो ट्रांसफार्मर उसकी सेकंडरी वाइंडिंग से वोल्टेज कम करके आउटपुट वोल्टेज लोड के लिए प्रदान करता है, ऐसे ट्रांसफार्मर को स्टेप डाऊन ट्रांसफार्मर (Step Down Transformer) कहते हैं।
ट्रांसफार्मर का काम क्या होता है?
ट्रांसफार्मर का मुख्य कार्य है विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थिर वोल्टेज (Voltage) परिवर्तित करना, बिना किसी फ्रीक्वेंसी (Frequency) या पावर में परिवर्तन किए बिना। यह किसी भी विद्युत प्रणाली के लिए विद्युत शक्ति को सुरक्षित और उपयोगी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ट्रांसफार्मर के बिना, विद्युत शक्ति को स्थानांतरित करना संभाव नहीं होता, जिससे हमारे बिजली वितरण और उपयोग में कई सारे समस्याएँ उत्पन्न होती।
इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन क्या होता है?
जब कोई इंसुलेटेड कॉईल बदलते चुम्बकीय क्षेत्र में स्थिर रखी जाती है। तब बदलती चुम्बकीय रेखाएं और स्थिर रखी गई कॉइल के टर्न्स के बीच कटिंग एक्शन होकर उस स्थिर रखी गई कॉइल में EMF (Electro Motive Force) निर्माण होता है।
इस सिद्धांत के आधार पर, ट्रांसफार्मर विद्युत शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने का काम करता है, बिना किसी फ्रीक्वेंसी (Frequency) या पावर (Power) के परिवर्तन किए।
जब कोई इंसुलेटेड कॉईल बदलते चुम्बकीय क्षेत्र में स्थिर रखी जाती है। तब बदलती चुम्बकीय रेखाएं और स्थिर रखी गई कॉइल के टर्न्स के बीच कटिंग एक्शन होकर उस स्थिर रखी गई कॉइल में EMF (Electro Motive Force) निर्माण होता है।
ट्रांसफार्मर कैसे काम करता है?
- प्राथमिक वाइंडिंग (Primary Winding): ट्रांसफार्मर के एक साइड पर प्राथमिक वाइंडिंग होती है, जिसे हम इनपुट वाइंडिंग भी कहते हैं। यहाँ पर विद्युत शक्ति का प्रवाह होता है।
- द्वितीयक वाइंडिंग (Secondary Winding): दूसरे साइड पर सेकंडरी विंडिंग होती है, जिसे हम आउटपुट वाइंडिंग भी कहते हैं। यहाँ पर विद्युत शक्ति का प्रवाह बदला जाता है और नई वोल्टेज पैदा होती है।
- कोर (Core): ट्रांसफार्मर के बीच में एक विशेष प्रकार का कोर होता है, जो इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन की प्रक्रिया को सहायक बनाता है।
जब प्राथमिक वाइंडिंग में विद्युत शक्ति का प्रवाह होता है, तो कोर के वायर्स में एक इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फ़ील्ड पैदा होता है। यह फ़ील्ड सेकंडरी वाइंडिंग में इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन को उत्पन्न करता है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ नई वोल्टेज पैदा होती है।
इस तरीके से, ट्रांसफार्मर विद्युत शक्ति को स्थानांतरित करता है, जिससे हम बिजली का सुरक्षित और उपयोगी रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
ट्रांसफार्मर्स में जरूरत के मुताबिक 2 प्रकार के इंडक्शन्स का use किया जाता है।
- म्यूच्यूअल इंडक्शन (Mutual Induction)
- सेल्फ इंडक्शन (Self Induction)
म्यूच्यूअल इंडक्शन (Mutual Induction)
अगर किसी इंसुलेटेड वायर की कॉइल के बगल में एक दूसरी वैसीही कॉइल रख दी जाए। और पहली कॉइल के दोनों सिरों में कुछ इलेक्ट्रिक AC वोल्टेज दिया जाए। तो दूसरी कॉइल जो कि पहली चार्ज कॉइल के पास में है। उस दूसरी कॉइल के दोनों सिरों में भी EMF (वोल्टेज) मिलने लगता है।
जिसके दोनों सिरों को अगर उस आउटपुट वोल्टेज से चलने वाले किसी इलेक्ट्रिक उपकरण को जोड़ दिया जाए तो वह उपकरण काम करने लकगत है।
ज्यादातर ट्रांसफार्मर्स म्यूच्यूअल इंडक्शन के तत्व पर ही काम करते हैं।
सेल्फ इंडक्शन (Self Induction)
यह इंडक्शन सिर्फ एक ही कॉइल या वाइंडिंग में होता है। जो प्रायमरी और सेकंडरी दोनों के लिए एकही होती ही। सेकेण्डरी के लिए प्रायमरी का कोई एक टर्मिनल और दूसरे टर्मिनल के लाइट वाइंडिंग के बीच से कुछ टेपिंग्स निकली हुई होती हैं।
सेल्फ इंडक्शन पर काम करने वाले ट्रानफॉर्मेर में एक उदाहरण है, ऑटो ट्रांसफार्मर।
हमे ट्रांसफार्मर (Transformer) की आवश्यकता क्यों होती है?
- विद्युत शक्ति की प्रवाह सुधारने के लिए: बिजली का वोल्टेज उच्च या निम्न हो सकता है, जो निर्भर करता है कि वोल्टेज कितनी दूर या कितनी पास है। ट्रांसफार्मर विद्युत शक्ति को वोल्टेज के अनुसार सामान्य लेवल पर ले आता है, ताकि हम इसे सुरक्षित और उपयोगी तरीके से उपयोग कर सकें।
- दूरस्थ विद्युत प्रेषण के लिए: बिजली को बड़ी दूरी पर पहुँचाने के लिए ट्रांसफार्मर का उपयोग होता है। यह बिजली को कम ऊर्जा हानि के साथ लम्बे दूरी तक पहुँचाता है, जिससे हमारे घर और व्यापार को स्थिर बिजली सप्लाई मिलती है।
- विद्युत उत्पादन के लिए: विद्युत उत्पादन के संदर्भ में भी ट्रांसफार्मर का महत्वपूर्ण योगदान होता है। विभिन्न प्रकार की ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न बिजली को उच्च वोल्टेज पर पहुँचाने के लिए ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है।
ट्रांसफार्मर एक विद्युत उपकरण होता है जो विद्युत ऊर्जा को एक आकर्षित दाब में और उसके बा
द उसी विद्युत ऊर्जा को बदलकर उच्च या निम्न वोल्टेज में पुनः उत्पन्न करता है। इसका मुख्य उद्देश्य है विद्युत शक्ति को बिना ज्यादा ऊर्जा की हानि किए उपयोग में लाना और अनुकूल वोल्टेज प्राप्त करना।
ऑटो ट्रांसफार्मर (Auto Transformer)
आपने कभी ऑटो ट्रांसफार्मर के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आज हम आपको इसके बारे में संक्षिप्त जानकारी देंगे। ऑटो ट्रांसफार्मर एक तरह की ट्रांसफार्मर होता है जिसका मुख्य उद्देश्य वोल्टेज को बदलना होता है, लेकिन यह काम थोड़ा अलग तरीके से करता है।
एक पारंपरिक ट्रांसफार्मर में, प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग अलग-अलग होते हैं, जबकि ऑटो ट्रांसफार्मर में एक ही वाइंडिंग होती है, जिसके बीच एक या एक से अधिक एक्सेसरी वाइंडिंग होती हैं। यह एक प्रक्रिया के दौरान वोल्टेज को कम या ज्यादा करने के लिए उपयोग होता है, और यह बिना बहुत ज्यादा ऊर्जा गवाए बदलाव कर सकता है।
ऑटो ट्रांसफार्मर अक्सर हाई-वोल्टेज प्रणालियों में उपयोग होता है, जैसे कि बिजली उपकरण और रेलवे सिस्टम्स में। यह ऊर्जा को सुरक्षित और अच्छे ढंग से वितरित करने में मदद करता है, और इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में भी होता है।
इस तरीके से, ऑटो ट्रांसफार्मर एक महत्वपूर्ण बिजली उपकरण होता है जो हमारे बिजली प्रणालियों को सुरक्षित और सही तरीके से काम करने में मदद करता है। इसके बिना, हमारे जीवन में बिजली की उपलब्धता पर असर पड़ सकता है।
बैटरी चार्जिंग के लिए ट्रांसफार्मर का उपयोग कैसे किया जाता है?|(How is Transformer Used for Battery Charging?)
6 वोल्ट, 9 वोल्ट, 12 वोल्ट और 24 वोल्ट की रिचार्जेबल बैटरी [(Rechargable Battery) पुनर्चार्जेयबल बैटरी] को चार्ज करने के लिए उतने ही वोल्टेज की जरूरत पड़ती है, जितनी उस बैटरी की वोल्टेज रेटिंग होती है। लेकिन बैटरी चार्जिंग के लिए AC करंट [(AC Current) एसी करंट] की बजाय DC करंट [(DC Current) डीसी करंट] ही इस्तेमाल किया जाता है।
लेकिन आप अब सोच रहे होंगे कि ट्रांसफार्मर तो सिर्फ AC SUPPLY पर काम करता है। तो बैटरी चार्जिंग में ट्रांसफार्मर का क्या रोल होता है?
ट्रांसफार्मर [(Transformer) ट्रांसफार्मर] सिर्फ AC Suppy पर काम करता है। लेकिन हमें जिस वोल्टेज रेटिंग की बैटरी चार्जिंग करनी है। उस वोल्टेज रेटिंग तक ट्रांसफार्मर [Transformer) के जरिये पहले सिंगल फेज AC Supplay को Step Down किया जाता है। जो AC ही होता है।
फिर उस कम किये गए AC करंट को रेक्टिफायर [(Rectifier) रेक्टिफायर] के जरिये DC Current [(DC Current) डीसी करंट] में परिवर्तित किया जाता है। ऐसा करने पर वोल्टेज उतनाही रहता है। जितना ट्रांसफार्मर आउटपुट देता है। रेक्टिफायर से सिर्फ AC करंट का DC करंट हो जाता है। जो बैटरी चार्जिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
3 फेज ट्रांसफार्मर ( 3 Phase transformer in hindi)
सिंगल फेज सप्लाय सिस्टम से ज्यादा फायदे 3 Phase सप्लाई सिस्टम में होते हैं। इसलिए आजकल 3 Phase Supply System का जनरेशन, ट्रांसमीशन और डिस्ट्रीब्यूशन किया जाता है। इस सप्लाय सिस्टम को अधिक कार्यक्षम बनाने के लिए भारतीय मानक संस्था ने हर एक पड़ाव के लिए एक मानक वोल्टेज निश्चित किया है।
जनरेशन वोल्टेज (Generation Voltage) | 11 KV |
ट्रांसमीशन वोल्टेज ( Transmission Voltage) | 440KV , 220KV, 132KV, 100KV, 66KV |
डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज (Distribution Voltage) | 11 KV |
वासत्व में उपयोग में लिया जाने वाला वोल्टेज (Utilization Voltage) | 440V या 230 V |
इस वोल्टेज मर्यादा को अगर ध्यान से समझे तो, 11000 वोल्ट जो जनरेट किया जाता है, और प्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों तक पहुंचने वाला वोल्टेज जो ग्राहक उपयोग में लाते है। वह होता है 3 Phase 440 वोल्ट और सिंगल फेज 230 वोल्ट.
इन सबसे हमे यह समझ आता है कि निर्माण किये गए 11000 वोल्ट को ही 440 वोल्ट और 230 वोल्ट तक कम किया जाता है।
इस प्रकार AC Supply System में ज्यादा वोल्टेज को कम करते समय अथवा कम वोल्टेज को ज्यादा करते समय उसके सप्लाय फ्रीक्वेंसी (Frequency) और पावर में बदलाव नही होना चाहिए। इसके लिए जो यंत्र आवश्यक होता है वह होता है 3 फेज ट्रांसफार्मर (3 Phase Transformer)
जो बड़े बड़े सब स्टेशनों में लगे होते हैं। जिन्हें पावर ट्रांसफार्मर (Power Transformer) कहा जाता है।
ट्रांसफार्मर (Transformer) को स्थिर यंत्र क्यों कहा जाता है?
आपने कभी सोचा है कि ट्रांसफार्मर को स्थिर यंत्र क्यों कहा जाता है? इसके पीछे एक बड़ी वजह होती है। आइए जानते हैं कि क्यों होता है ट्रांसफार्मर को स्थिर यंत्र कहा जाता है।
ट्रांसफार्मर में कोई भी पार्ट मोटर की तरह घूमने वाला या आवाज करने वाला नहीं होता। इसका मतलब है कि यह यंत्र अपने काम को चुपचाप और स्थिरता से करता है, बिना किसी आवाज या गतिविधि के।
ट्रांसफार्मर का मुख्य कार्य होता है वोल्टेज को बदलना, जैसे कि उच्च वोल्टेज को कम वोल्टेज में या ज्यादा वोल्टेज को कम करना। इस प्रक्रिया के दौरान, यह यंत्र किसी भी तरह की आवाज नहीं करता है, और यह अपने स्थान पर बिना हिचकिचाए काम करता है।
इस वजह से ही ट्रांसफार्मर को “स्थिर यंत्र” कहा जाता है। यह यंत्र हमारी विद्युत प्रणालियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन यह यंत्र खुद अपने काम को ख़ामोशी से और स्थिरता से पूरा करता है।
ट्रांसफार्मर (Transformer) की साधारण संरचना | Simple Structure Of Transformer-In Hindi
ट्रांसफार्मर किससे बंता है?
ट्रांसफार्मर (Transformer) की रचना में मुख्यतः कोर (Core) और वाइंडिंग (Winding) यह दो मुख्य भाग होते हैं।
ट्रांसफार्मर (Transformer) कोअर (Transformer Core)
कोअर यह अंग्रेजी के L टाइप, E टाईप, I टाईप अथवा अयताकृति आकर के स्टेपिंग्स से बना होता है। यह स्टेपिंग्स सिलिकॉन स्टील के 0.35 mm से 0.5 mm जितनी मोटी बनी होती हैं।
इस तरह की अनेकों स्टेपिंग्स आपस मे एकदूसरे से उनसुलेटेड करके लैमिनेटेड कोअर बनाया जाता है। कोर (Core) बनाने के लिए सिलिकॉन स्टील का उपयोग किया जाता है। क्योंकि इससे हिस्टेरिसेस लॉस कम होता है। और कोई लामीनेटेड बनाने से एडी करंट लॉस कम होता है।
ट्रांसफार्मर (Transformer) वाइंडिंग (Transformer Winding)
ऊपर बताये गए ट्रांसफार्मर (Transformer) कोअर (Transformer Core) पर कोर (Core) से इन्सुलेटेड करके प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) की जाती है। जिस वाइंडिंग (Winding) को सप्लाय दिया जाता है उसे प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) कहा जाता है।
जिस वाइंडिंग (Winding) से लोड के लिए सप्लाई लिया जाता है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) कहा जाता है। जिस तरह इंडिंग्स कोर (Core) से इंसुलेटेड की जाती है। उसी तरह प्राइमरी वाइंडिंग (Winding) और सेकेंडरी वाइंडिंग (Winding) भी आपस मे इंसुलेटेड की जाती है।
ट्रांसफार्मर (Transformer) के प्रकार
रचना के आधार पर ट्रांसफार्मर (Transformer) के प्रकार
ट्रांसफार्मर (Transformer) के कोर की रचना के आधार पर ट्रांसफार्मर (Transformer) के 3 प्रकार होते हैं
- कोर टाईप ट्रांसफार्मर (Core Type transformer in hindi)
- शेल टाईप ट्रांसफार्मर (shell Tyep transformer in hindi)
- बेरी टाईप ट्रांसफार्मर (Berry Type transformer in hindi)
कोर टाईप ट्रांसफार्मर (Core Type transformer in hindi)
जैसा कि आकृति में दिखाया गया है, की कोर टाईप ट्रांसफार्मर (Transformer) के कोर की स्टेपिंग्स L टाइप होती है। सब स्टेपिंग्स एक दूसरे से लैमिनेटेड होती है। कोर पर जहां प्राइमरी और सेकंडरी वाइंडिंग की जाती है। वहां दोनों वाइंडिंग भी आपस मे एक दूसरे से इंसुलेटेड होती है।
साथी ही कोर से भी इंसुलेटेड होती है। इस कोर पर इंडिंग्स एक के बाद एक इस तरह से की जाती है। आपको आसानी से समझ आये इसलये आकृति में वाइंडिंग एक दूसरे से अलग दिखाई गई है। लेकिन वास्तव में दोनों इंडिंग्स एक दूसरे के ऊपर होती हैं।
इस तरह के कोर में फ्लक्स को बहने के लिए सिर्फ एक ही मार्ग होता है। इस वजह से इसमें लीकेज फ्लक्स का प्रमाण बहुत कम होता है। इस प्रकार के कोर की औसतन लंबाई ज्यादा होती है, लेकिन इसके आड़े काट छेद का क्षेत्रफल कम होता है। इसलिए ज्यादा टर्न्स इस कोर पर करने पड़ते हैं। इस ट्रांसफार्मर (Transformer) का उपयोग High Output Voltage के लिए किया जाता है।
शेल टाईप ट्रांसफार्मर (shell Tyep transformer in hindi)
जैसा कि आकृति में दिखाया गया है, की शेल टाईप ट्रांसफार्मर (Transformer) के कोर की स्टेपिंग्स E टाइप और I टाइप होती है। सब स्टेपिंग्स एक दूसरे से लैमिनेटेड होती है। कोर के बीच जहां प्राइमरी और सेकंडरी वाइंडिंग की जाती है। वहां दोनों वाइंडिंग भी आपस मे एक दूसरे से इंसुलेटेड होती है। और यह दोनों इंडिंग्स प्राइमरी और सेकंडरी एक के बाद एक दूसरे के ऊपर की जाती है।
कोर पर वाइंडिंग करते समय पहले प्राइमरी इंडिमग फिर उसके बाद प्राइमरी वाइंडिंग पर सेकंडरी वाइंडिंग की जाती है। ऐसा करने से लीकेज फ्लक्स का प्रमाण कम हो जाता है।
इस ट्रांसफार्मर (Transformer) के कोर में फ्लक्स को बहने के लिए 2 मार्ग होते हैं। वाइंडिंग बीच के लिंब पर स्थित होने के कारण इसमें लीकेज फ्लक्स का प्रमाण ज्यादा होता है। शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) के कोर की औसतन लंबाई कम होती है, लेकिन आड़े काट छेद का क्षेत्रफल ज्यादा होता, इसलिए कम टर्न्स इस कोर पर करने पड़ते हैं।
इस ट्रांसफ़ॉर्मर का उपयोग Low Output Voltage के लिए किया जाता है। ज्यादातर सिंगल फेज ट्रांसफार्मर (Transformer) में शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) का उपयोग किया जाता है।
बेरी टाईप ट्रांसफार्मर (Berry Type transformer in hindi)
इसे डिस्ट्रिब्यूटेड कोर टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) भी कहा जाता है। जैसा कि आकृति में दिखाया गया है। बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) का कोर अयताकृति डिस्क से बना होता है। हर डिस्क की एक एक side का एक समूह बनाकर उस समूह पर वाइंडिंग की जाती है।
बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) में जितने स्टेपिंग्स होते हैं, उतने ही मार्ग फ्लक्स के बहाने के लिए होते हैं।
बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) में समस्याएं
- बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) की रचना थोड़ी उलझन भरी होती है।
- इसका मेंटेनेंस करना भी थोड़ा कठिन होता है।
- वाइंडिंग करना कठिन होता है।
- लीकेज क्रांतबक प्रमाण ज्यादा होता है।
इसी वजह से बेरी टाइप ट्रांसफार्मर (Transformer) ज्यादा चलन में नही हैं।
कोर टाइप ट्रांसफार्मर और शेल टाइप ट्रांसफार्मर में क्या फर्क होता है?
कोर टाइप ट्रांसफार्मर | शेल टाइप ट्रांसफार्मर |
1 फ्लक्स बहने का एक ही मार्ग होता है। | 1 फ्लक्स बहने के लिए दो मार्ग होते हैं। |
2 कोर के दिनों लिंब पर वाइंडिंग होती है। | 2 बीच के लिंब पर वाइंडिंग होती है। |
3 वाइंडिंग बाहर की तरफ होने की वजह से बाहरी हवा से वाइंडिंग ठंडी रखने में मदत होती है। | 3 वाइंडिंग बीच के लिंब पर होने की वजह से कोर ठंडा होता है। |
4 कोर की औसतन लंबाई ज्यादा होती है। | 4 कोर की औसतन लंबाई कम होती है। |
5 कोर के आड़े काट छेद का क्षेत्रफल कम होता है। | 5 कोर के आड़े काट छेद का क्षेत्रफल ज्यादा होता है। इसलिए कम टर्न्स लगते हैं। |
6 लीकेज फ्लक्स का प्रमाण कम होता है। | 6 लीकेज फ्लक्स का प्रमाण ज्यादा होता है। |
7 वाइंडिंग बाहरी लिंब पर होने के कारण आसानी से दिखाई देती है, और मेंटेनन्स के लिये आसान होती है। | 7 दुरुस्ती के लिए कठिन होता है। और वाइंडिंग करने में आसान नही होता । |
8 हाय वोल्टेज के लिए यह उपयुक्त होता है। | 8 लो वोल्टेज के लिए उपयुक्त होता है। |
वोल्टेज के अनुसार ट्रांसफर्मर के कितने प्रकार होते हैं?
वोल्टेज को कम या ज्यादा करने के हिसाब से ट्रांसफार्मर (Transformer) के 2 प्रकार हैं।
- स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step up transformer in hindi)
- स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Step Down transformer in hindi)
जिनके बारे में आपने इस आर्टिकल के शुरुवात में थोड़ा पढ़ा है। अब विस्तार में देखते हैं।
स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step up transformer in hindi)
जो ट्रांसफार्मर (Transformer) अपनी प्राइमरी वाइंडिंग को दिए हुए वोल्टेज को ज्यादा वोल्टेज में परिवर्तित करके आउटपुट वोल्टेज देता है, उस ट्रांसफार्मर (Transformer) को स्टेप उप ट्रांसफार्मर (Transformer) (Step Up Transformer) कहते हैं।
इसकी रचना कोर टाइप अथवा शेल टाइप होती है। स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Transformer) की वाइंडिंग टर्न्स प्राइमरी से ज्यादा सेकंडरी में होते हैं।
इस वजह से प्राइमरी के फ्लक्स सेकंडरी के ज्यादा टर्न्स से कट जाती हैं। सेकंडरी वाइंडिंग में म्यूचअल इंडक्शन की क्रिया होकर ज्यादा वोल्टेज निर्माण होता है। सेकंडरी का वोल्टेज ज्यादा होने की वजह से सेकंडरी का करंट कम होता है।
इसलिए प्राइमरी वाइंडिंग कम टर्न्स और ज्यादा मोटे तार की होती है। और सेकंडरी वाइंडिंग ज्यादा टर्न्स की और कम मोटे तार की होती है।
जिस जगह वोल्टेज बढ़ाना पड़ता है, उस जगह स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step Up Transformer) का उपयोग होता है।
स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Step up transformer in hindi)
जो Transformer अपनी प्राइमरी वाइंडिंग को दिए हुए वोल्टेज को कम वोल्टेज में परिवर्तित करके आउटपुट वोल्टेज देता है, उस ट्रांसफार्मर (Transformer) को स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Step Down transformer in hindi) कहते हैं। इस ट्रांसफार्मर (Transformer) की रचना भी कोर टाइप अथवा शेल टाइप होती है। स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Transformer) की प्राइमरी कम मोटे तार की और ज्यादा टर्न्स की होती है। सेकंडरी कम टर्न्स और मोटे तार से बनी होती है।
इस ट्रांसफार्मर (Transformer) का उपयोग वोल्टेज को कम करने के लिए किया जाता है।
ट्रांसफार्मर कैसे बनाया जाता है?
ट्रांसफार्मर की Rating क्या होती है?
ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग कई मापदंडों पर निर्भर करती है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण हैं:
- वोल्टेज रेटिंग – ट्रांसफॉर्मर की वोल्टेज रेटिंग उस वोल्टेज स्तर को दर्शाती है, जिस पर यह काम करता है। उदाहरण के लिए, यदि एक ट्रांसफॉर्मर 220V के वोल्टेज स्तर पर काम करता है, तो इसकी वोल्टेज रेटिंग 220V होगी।
- क्षमता रेटिंग – ट्रांसफॉर्मर की क्षमता रेटिंग उस शक्ति को दर्शाती है, जिसे यह संचालित कर सकता है। इसे वाट्स में निर्धारित किया जाता है।
- फेज रेटिंग – ट्रांसफॉर्मर के फेज रेटिंग उस संख्या को दर्शाता है, जिसमें यह फेजों में विभाजित होगा। ट्रांसफॉर्मर एक फेज, दो फेज या तीन फेज के रूप में हो सकता है।
- फ्रीक्वेंसी रेटिंग – ट्रांसफॉर्मर की फ्रीक्वेंसी रेटिंग उस आवृत्ति को दर्शाती है, जिसमें यह काम करता है। यह हर्ट्ज (Hz) में निर्धारित किया जाता है।
ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग के अलावा, इसकी अन्य महत्वपूर्ण मापदंड शामिल होते हैं, जैसे कि ट्रांसफॉर्मर के निस्तारण तथा विद्युत विपरीतता भी इसकी रेटिंग पर असर डालते हैं। ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग उसके उपयोग के अनुसार चुनी जाती है, जैसे उद्योग, ट्रांसमिशन लाइन या घरेलू उपयोग के लिए।
इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर (Instrument transformer in hindi)
इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफर्मर यह एक प्रकार का स्टेप अप ट्रांसफार्मर (Transformer) या स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Transformer) ही होता है।
लेकिन इसके सेकंडरी वाइंडिंग को एक कम रेंज के वोल्टमीटर या अमीटर कनेक्ट होता है। इसका उपयोग HT Line का करंट और वोल्टेज मेजर करने के लिए किया जाता है।
HT Line का करंट मेजर करने के लिए Current Transformer (CT) और वोल्टेज मेजर करने के लिए पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Transformer) (PT) का उपयोग किया जाता है।
करंट ट्रांसफार्मर (Current transformer in hindi – CT)
यह एक स्टेप अप ट्रांसफ़ॉर्मर होता है। जैसा कि आकृति में दिखाया गया है। करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) की प्राइमरी वाइंडिंग मोटे तार की और कम टर्न्स की( एक या दो टर्न्स कई जगहों पर सिर्फ एक टर्न की) होती है।
करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) की प्राइमरी वाइंडिंग HT Line के सीरीज में जोड़ी जाती है। सेकंडरी वाइंडिंग बारीक तार की होती है। और ज्यादा टर्न्स की होती है।
सेकंडरी वाइंडिंग के छोर पर एक लौ रेंज के अमीटर जुड़ा होता है, जिसकी एक साइड अर्थ की जाती है। अमीटर कम रेंज का होता है, लेकिन इसकी स्केल ट्रांसफार्मर (Transformer) के रेशियो के हिसाब से विभाजित होती है।
करंट ट्रांसफार्मर की कार्यपद्धती
Current Transformer की प्रायमरी HT Line के सीरीज में होने के कारण पूरा करंट प्राइमरी वाइंडिंग में से फ्लो होता है। इस वजह से प्राइमरी के चारो ओर फ्लक्स निर्माण होते हैं।
प्राइमरी में निर्माण हुई फ्लक्स यह सेकंडरी इंडिन्स की टर्न्स से कट जाती है। सेकंडरी के टर्न्स ज्यादा होने के कारण सेकंडरी में उच्च वोल्टेज निर्माण होता है। लेकिन सेकंडरी का करंट यह Transformer के रेशियो के प्रमाण से कम ही होता है। यह कम करंट अमीटर में से फ्लो होता है।
अमीटर में बहने वाला करंट वास्तव में कम होता है लेकिन अमीटर की स्केल यह ट्रानफॉर्मर के रेशियो के हिसाब से विभाजित होती है। जिस वजह से अमीटर पर HT Line में से बहने वाले वास्तविक करंट की रीडिंग हमे मिलती है। इस तरह HT Line का High Current Low Range के अमीटर से मेजर करना आसान होता है। जो बिना करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) के असंभव है।
क्यों कि उच्च करंट पर अगर कम रेंज का अमीटर उपयोग में लाया जाए तो वह जल जाएगा। इसलिए करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) से पहले HT Line का करंट कम किया जाता है। और फिर उसे कम रेंज के अमीटर से मेजर किया जाता है।
करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) की सेकंडरी साइड अर्थ क्यों कि जाती है?
Current Transformer की सेकंडरी वाइंडिंग अगर किसी कारणवश ओपन हो जाए, तो सेकंडरी से कुछ भी करंट फ्लो नही होता। इस वजह से सेकंडरी में फ्लक्स निर्माण नही होते।
अब इस समय प्राइमरी फ्लक्स को विरोध करने वाले फ्लक्स न होने के कारण कोर में से ज्यादा से ज्यादा फ्लक्स फ्लो होने लगते हैं। सेकंडरी में High Voltage निर्माण होता है। High Voltage के कारण कोर और वाइंडिंग के बीच का इंसुलेशन (Insulation) खराब होने लगता है।
करंट ट्रांसफार्मर का कोर बहुत गर्म हो जाता है। ज्यादा ऊष्मा के कारण कोर का चुम्बकीय गुण हमेशा के लिए गायब (समाप्त) हो जात है। और कई बार तो कुछ समय बाद करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) ब्लास्ट होने की भी संभावना बन जाती है।
ऐसा ना हो इस वजह से करंट ट्रांसफार्मर की सेकंडरी वाइंडिंग कभी भी ओपन नही रखी जाती। सेकंडरी साइड में एक लो रेंज के अमीटर जोड़कर सेकंडरी वाइंडिंग का सर्किट हमेशा क्लोज रखा जाता है। उसकी एक साइड अर्थ कर दी जाती है।
अचानक अमीटर में कुछ खराबी होने के कारण या और किसी कारण से सेकंडरी वाइंडिंग ओपन होने की संभावना हमेशा रहती है। ऐसा होने के कारण ऊपर बताया गया धोका करंट ट्रांसफार्मर (Transformer) को होता है।
इसलिए सेकंडरी में अमीटर जोड़ने के बावजूद उसकी एक साइड हमेशा अर्थ की जाती है। जब कभी भी अमीटर सर्किट से निकाला जाता है, तब सेकंडरी साइड शार्ट की जाती है। ताकि सर्किट हमेशा क्लोज रहे।
पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential transformer in hindi– PT)
पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Transformer) (Potential Transformer) यह स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Transformer) होता है। सेकंडरी वाइंडिंग के टर्न्स मोटे तार के और कम टर्न्स के होते हैं।
यह Shell Type Transformer होता है। जैसा कि आकृति में दिखाया गया है, PT की प्राइमरी वाइंडिंग बारीक तार की और ज्यादा टर्न्स की होती है।
पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Transformer) की प्राइमरी वाइंडिंग HT Line के पैरलल जोडब्जाति है। सेकंडरी वाइंडिंग के छोर पर एक लो रेंज के वोल्टमीटर जुड़ा होता है। (साधारणतः सेकंदसरी का वोल्टेज 110 V तक स्टेप डाउन किया होता है।)
पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential transformer in hindi– PT) की कार्यपद्धति | पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) कैसे काम करता है?
Potential Transformer PT की प्रायमरी वाइंडिंग HT Line के पैरलल जुड़ी होती है। प्राइमरी के फ्लक्स सेकेंडरी वाइंडिंगस के टर्न्स से कट जाते हैं। सेकंडरी के टर्न्स कम हिने के कारण सेकंडरी में कम वोल्टेज निर्माण होता है।
यही कम वोल्टेज सेकंडरी से जुड़े वोल्टमीटर को मिलता है। वास्तव में वोल्टमीटर को कम वोल्टेज मिलता है। लेकिन उस वोल्टेज की स्केल ट्रांसफार्मर (Transformer) के रेशियो के हिसाब से विभाजित होती है। इसलिए वाल्टमीटर पर मिलने वाली रीडिंग यह HT Line के उस समय के वास्तविक वोल्टेज के बराबर दिखाई देती है। इस तरह HT Line का High Voltage लो रेंज के वोल्टमीटर से आसानी से मेजर किया जाता है।
होम पेज | यहाँ क्लिक करें |
यह भी पढ़ें…
तो दोस्तों आपका अगर कोई सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेन्ट बॉक्स मे कमेन्ट करें या हमारे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ें।
नई पोस्ट्स के अपडेट्स पाने के लिए सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें नीचे दिए गए लोगो पर क्लिक करके
होम पेज | यहाँ क्लिक करें... |
हमारा WhatsApp चैनल फॉलो करें | यहाँ क्लिक करे |
हमारा टेलीग्राम चैनल फॉलो करें | यहाँ क्लिक करे |
Good
Best
Best
Nice