किसी भी इलेक्ट्रिकल उपकरण जो धातु की बॉडी का होता है? उसे अर्थिंग करना बहुत जरूरी होता है। हर घर ऑफिस इमारत मे अर्थिंग करना बहुत जरूरी होता ह। यह अर्थिंग किस तरह से की जाती है यह हम आज इस आर्टिकल मे पढ़ने वाले हैं।
दोस्तों अर्थिंग नीचे बताए गए 2 प्रकार से की जाती है
- प्लेट अर्थिंग |Plate Earthing
- पाईप अर्थिंग | Pipe Earthing
प्लेट अर्थिंग |Plate Earthing
इस प्रकार की अर्थिंग के नाम से ही हम समझ सकते हैं कि इसमें धातू की प्लेट का उपयोग होता है। प्लेट अर्थिंग के लिए तांबे (Copper) के धातु की या G.I. की प्लेट का उपयोग किया जाता है।
प्लेट अर्थिंग करने के लिए जमीन में 90×90 cm का गड्ढा 3 मीटर तक गहरा खोदा जाता है।
यह भी पढ़ें…
र्थिंग प्लेट की मोटाई कितनी होती है?
उस गड्ढे में 60 cm लंबी ×60cm चौड़ी और 3.15 mm मोटी तांबे (Copper) की प्लेट या फिर 60 cm लंबी × 60cm चौड़ी और 6.3 mm मोटाई वाली G.I. की प्लेट अर्थ इलेक्ट्रोड के रूप में इस्तेमाल की जाती है।
उस प्लेट को 19 mm और 12.7 mm व्यास के दो पाईप जोड़ दिए जाते हैं। 19 mm व्यास वाले पाईप के ऊपरी सिरे पर एक फनेल जुड़ी होती है। अर्थ इलेक्ट्रोड से कनेक्शन करने ले लिए एक ओपन कॉपर/G.I. वायर 12.7 mm व्यास वाले पाईप से होते हुए जमीन से बाहर निकली जाती है।
अर्थ इलेक्ट्रोड के चारो ओर रेत(बालू), नमक और कोयले की 15-15 cm की एक के बाद एक परत दर परत बिछाई जाती है। इस तरह की परत ऊपर 90 cm तक बिछाई जाती है।
बाकी का गड्ढा काली मिट्टी से भरने के बाद, साधारणतः 2.5 मीटर के बाद अर्थ कंडक्टर वाले पाईप को बाहर निकल जाता है, जहां पर अर्थिंग का कनेक्शन करना होता है। जिस पाईप के ऊपरी सिरे पर फनेल लगी होती है।
उस पाईप के चारो ओर जमीन की सतह बसे नीचे 30cm × 30 cm सीमेंट कॉन्क्रीट का एक टैंक बना दिया जाता है, और उसे कास्ट आयर्न से बने एक ढक्कन से ढक दिया जाता है।
इस तरह से प्लेट अर्थिंग करके मुख्य स्विच और वहां से आवश्यक स्थान तक अर्थ कंडक्टर पहुंचाकर अर्थिंग की जाती है।
जनरेटिंग स्टेशन और सब स्टेशन्स में इस प्रकार की अर्थिंग की जाती है।
पाईप अर्थिंग | Pipe Earthing
पाईप अर्थिंग करने के लिए जमीन में 70cm लंबा, 70cm चौड़ा और 3.75 मीटर गहरा एक गड्ढा किया जाता है। 38mm व्यास और 2 मीटर लंबा एक G.I. का पाईप उस गड्ढे में अर्थ इलेक्ट्रोड के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
उस पाईप की पूरी सतह पर 12mm के छिद्र बने होते हैं। जो आपस मे 7.5 cm अंतर पर बने होते हैं। इस अर्थ इलेक्ट्रोड को रिड्युसिंग सॉकेट की मदत से 19mm व्यास का एक और 12.7mm व्यास का एक ऐसे दो G.I. पाईप कनेक्ट किये जाते हैं।
19mm व्यास वाले पाईप के ऊपरी सिरे पर एक फनेल जुड़ी होती है। फनेल का उपयोग अर्थिंग को पानी देने के लिए किया जाता है। अर्थ लीड के लिए एक ओपन कंडक्टर अर्थ इलेक्ट्रोड को कनेक्ट करके 12.7mm व्यास वाले पाईप के जरिये बाहर निकाला जाता है।
इसका उद्देश्य यह है कि अर्थ लिड को कहीं से क्षति ना पोहचे।
अर्थ इलेक्ट्रोड के चारो ओर नीचे से 15-15 cm के अंतराल से रेती (बालू), नामक और कोयले की परत दर परत बिछाई जाती है।
अर्थ इलेक्ट्रोड के ऊपर का गड्ढा मिट्टी से ढक दिया जाता है।
अर्थ कंडक्टर जो 12.7mm व्यास वाले पाईप से बाहर निकाला जाता है, उसे आगे जमीन में 60 cm नीचे से होते हुए, जिस जगह पर अर्थिंग करनी हो वहां तक पहुंचाया जाता है।
फनेल के चारो ओर 30×30 cm का सीमेंट कॉन्क्रीट का एक टैंक बनाया जाता है। उसे कास्ट आयर्न के एक ढक्कन से ढक दिया जाता है।
इस प्रकार की लो और मीडियम व्होल्टेज की वायरिंग इंस्टालेशन के लिए की जाती है।
कोयला और नमक का उपयोग अर्थिंग के लिए क्यों किया जाता है?
अर्थिंग करते समय अर्थ इलेक्ट्रोड के चारो ओर नमक और कोयला डाला जाता है। क्योंकि नमक जमीन के क्षार को सोक लता है। और कोयला जमीन की नमी बनये राखता है। जिससे जमीन की कंडक्टिव्हीटी बढ़ जाती है। जमीन की कंडक्टिव्हीटी ज्यादा होगी तभी लीकेज करंट आसानी से जमीन में जा पायेगा।
अर्थिंग में पानी क्यों डाला जाता है ?
गर्मियों के मौसम में जमीन सूख जाती है। जिस कारण जमीम की कंडक्टिव्हीटी कम हो जाती है। जमीन में नमी बढाने के लिए अर्थिंग में फनेल के जरिये पानी डाला जाता है। अर्थिंग में कचरा जाकर पानी डालने का मार्ग बंद न हो जाये इस वजह से अर्थिंग के फनेल के ऊपर एक कास्ट आयर्न का ढक्कन लगाया जाता है।
यह भी पढ़ें…
नई पोस्ट्स के अपडेट्स पाने के लिए सोशल मीडिया पर हमसे जुड़ें नीचे दिए गए लोगो पर क्लिक करके
अर्थिंग की पूरक विधि क्या होती है🤔🤔🤔